भक्ति कैसे की जाए



भक्ति कैसे की जाए ? भक्ति को अपना उद्देश्य बनाने के बाद,
 कैसे उसके लिए अपने कर्तव्य को निभाया जाए ? 
भक्ति केवल मंदिरों में बैठकर प्रभु का गुणगान करना या केवल प्रभु को भोग लगाना 
या उनको प्रसन्न करना नहीं होता,
 भक्ति तो वह सागर है जिसमें जितने गोते लगाया जाए उतना कम है |
 भक्ति में हमें सबसे पहले सेवा को अपनाना चाहिए,
 सबको एक समझना चाहिए और उनकी सेवा को अपना ही अपना धर्म
आप ही सोचिये यदि कोई दुखी हो,
 परेशान हो और यदि आप उससे मुस्कुरा के मिले और अपने वचनों से उसके दुःख को अपना बना ले तो 
उसको कैसा अनुभव होगा ?
 तब उस व्यक्ति के लिए परम शांति होगी और उसकी आँखों में उस वक़्त जो सागर छलकेगा
 वह ऐसा स्वछ होगा जिसमें डूब के यदि खोजा जाए तोह प्रभु के दर्शन हो सकते है |
 कहते है जहां परम शांति वहाँ परमात्मा यह कार्य इतना सरल नहीं 
इस राह पर चलने के लिए ज्ञान की आवशयकता है
ज्ञान खुद पर सयम रखने काज्ञान परमात्मा की रचना को अपना बनाने का
और ज्ञान अपनी इन्द्रियों को सही दिशा में लगाने का ज्ञान की अभी जो चर्चा हमने की देखने में लगता है
 यह बहूत सरल है
 किन्तु यह सरल नहीं यदि प्रभु को हर एक कण में देखना या
 महसूस करना इतना सरल होता तो कपटदोषईर्ष्या 
और लालच जैसी बातों का कोई अस्तित्व ही ना होता सोच कर देखिये
 जब परमात्मा ही एक मात्र सत्य है और हम सब उस सत्य के आकार तो हम कहाँ से आते है
जनम लेते हैऔर फिर मृत्यु के तत पश्चात कहाँ चले जाते है ?
 जनम लेने के पश्चात एक दूजे से जुड़ जाते है 
किन्तु क्यों मरने पर अकेले किसी अनजान राह पर निकल पड़ते है ? 
यह सब तब ही संभव है 
जब हम भक्ति को समझते हुए प्रभु की हर एक रचना को अपना बनाते चले और 
जुड़ने से लेके बिछरने तक के हर एक मोल को समझे और उसके पीछे के रहस्य को भी
जो बिना ज्ञान के कभी कर सकते क्यूकि जो ज्ञानी नहीं वह मुर्ख है 
और मुर्ख की नजरूं के आगे ना स्प्षटता होती है और
 ना किसी को अपना बनाने की शमताकहते है
 भक्ति का पहला द्वार है कल्याण का और दूसरा द्वार है ज्ञान का | 
आज हम ब्रह्मा गुरु की शरण में अपनी शिक्षा को अपना मार्ग बनायेंगे और 
अपना दूसरा चरण शुरू करेंगे,
 यहाँ हमें तकलीफ भी होगी
हम डगमगायेंगे भी और भटकेंगे भी किन्तु हमें अपनी श्रधा और 
आस्था के साथ इसका अध्यान करना है और 
अपनी भक्ति को गहरा रंग देना है



गुरु उच्च गुरु नेक गुरु ही सारा लेख,
गुरु ही जाने परमात्मा के कण कण का भेद "

परम पिता परमेश्वर के बाद यदि कोई शक्ति है तो वह है गुरु गुरु ही वह है 
जो हमको परमात्मा से जुडी राह पर चलने योग्य बनता है |
 गुरु जो सिखाये उसको अपना जीवन बनाना चाहिए और
 गुरु जो आज्ञा दे उसका पालन करना चाहिए और
 गुरु जो कर्म का पाठ पदाए उसपे अमल करना चाहिए कहते है
 जैसे एक पिता और बच्चे के बीच माँ ही ऐसी कड़ी होती है 
जो उनको एक दुसरे से बाँधे रखती है और 
दोनों को एक साथ लेके चलती है और 
उनके अन्दर गहरे प्रेम को एक रूप देती है
 ऐसे ही परम पिता परमेश्वर के साथ केवल गुरु ही वह कड़ी है
 जो हमें परमात्मा के साथ बाँधे रखती है और
 हमें जीवन के रहस्यों और ब्रहमांड के रहस्यों को समझने में मदद करती है 
परमात्मा खुद हमको ज्ञान देने नहीं आते परमात्मा गुरु के रूप में अपने ज्ञान की शक्ति हमको देते है 
ताकि हम अपने लक्ष्य को समझे और उसका पालन करें |